संसार में अनेक दीवारों की तरह यह पुस्तक जीवन और व्यक्ति के बीच की दीवार पर आधारित है। जब तक हम इस दीवार पर सीढ़ी नहीं लगाएंगे तब तक हम ज़िंदगी की तरफ देख नहीं पाएंगे, ज़िंदगी की तरफ जा नहीं पाएंगे, और ज़िंदगी से अलग ही रहेंगे। ज़िंदगी और व्यक्ति के बीच सम्पर्क स्थापित करती यह पुस्तक इसी संबंध पर आधारित है।
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राज गौरव वर्मा, इतिहास, मानव शास्त्र, अंग्रेजी साहित्य, एवम् हिंदी साहित्य के विद्यार्थी हैं। उनकी रुचि भारतीय बाल साहित्य, आधुनिक एवं उत्तर आधुनिक साहित्य में है। हाल में उनकी रुचि के आकर्षण का केंद्र, वृक्ष साहित्य, जंतु साहित्य एवं पर्यावरणीय साहित्य का अध्ययन है। वैश्विक स्तर पर हो रहे शोध अनुकूल वे भी मानवीय पहचान को पुनः विस्थापित कर उन्हें अन्य जीव, वनस्पति एवं मानवों से सम्पर्क स्थापित कर एक नवीन प्रकार से देखने का प्रयास कर रहे हैं। यह पुस्तक हिंदी में इनका पहला साहित्यक प्रयास है।
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