स्वाधीनता संग्राम भारतीय इतिहास का ऐसा कालखंड रहा है, जिसमें सभी वर्ग के क्रांतिकारी जाति, वर्ग, पंथ और धर्म से ऊपर उठकर स्वतंत्रता के महायज्ञ में बलि हो गए। यह समर न केवल पीड़ा, यन्त्रणा, दंभ, आत्मसम्मान तथा शहीदों के लहू को समेटे हुए है, अपितु लेखकों और कवियों ने भी कलम से क्रांति करने में अपनी बखूबी भूमिका निभाई।
कलम के इन सिपाहियों की रचनाओं ने न केवल आजादी की लड़ाई में चेतना का शंख फूँका अपितु भाषाओं के साहित्य को दृढ़तापूर्वक नवीन आयाम प्रदान किए जिसे कतई विस्मृत नहीं किया जा सकता। अत्यंत हतभागिता का विषय है कि इन साहित्यकारों के योगदान को विस्तृत रूप से अंकित नहीं किया गया। झाँकी-स्वरूप कुछ विशिष्ट व्यक्तित्व को छोड़कर सब अतीत के धुंधलके में गुम हो चुके हैं क्योंकि स्वतंत्र भारत के पुरोधाओं ने उस त्रासद घटना के समस्त क्रांतिकारी साहित्यकारों का पर्याप्त मूल्यांकन करने का कष्ट उठाना आवश्यक नहीं समझा।
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नाम : प्रिया शर्मा, शिक्षा : हिंदी साहित्य (परास्नातक), संस्कृत साहित्य (आचार्या एवं शिक्षा स्नातक) महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर से द्विभाषी अनुवाद की स्नातकोत्तर उपाधि में शीर्षस्थ स्थान। कार्यक्षेत्र : अध्यापन तथा परिमार्जित हिंदी में सृजनात्मक लेखन। आप राष्ट्र सेविका समिति (हिन्दू राष्ट्रवादी महिला संगठन) की एक सक्रिय सेविका भी हैं। "सत्य जहाँ आनंद का स्रोत बनकर अंकनी से फूट पड़े, वह वहीं साहित्य हो जाता है।" इसी लीक पर चलते हुए आप निरंतर साहित्य सृजन को गति दे रही हैं। सम्मान : भवालकर स्मृति कहानी लेखन प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम पुरस्कार तथा सम्मान राशि अर्जित। प्रकाशन : मई, 2013 में देश की प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका में आपका पहला मुद्रित संस्करण प्रकाशित हुआ। क्षिप्र-प्रकाश्य : उपहत वनिता की पीर (क्षणिका-संग्रह), पिता-एक शक्तिस्तम्भ (आख्यायिका)।
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