इस काव्य संग्रह का मुख्य उद्देश्य वन संरक्षण के महत्व को सामान्य जन-मानस के मध्य रखना है जो वैज्ञानिक भाषा की पहुँच से दूर है। वेदपूर्व काल से प्रकृति मनुष्य के लिए जिज्ञासा का विषय रही है। इसी कारण वेदों से लेकर आज तक कविता में वह न केवल छायी रही बल्कि ऐसा लगता है, प्रकृति के प्रति संवेदना बिना कोई भी कवि पूरा होता ही नहीं।
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भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक, युवा हिन्दी लेखक डॉ. आशीष रतूड़ी 'प्रज्ञेय' उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल से ताल्लुक़ रखते हैं। 'प्रज्ञेय' जी ने भौतिक विज्ञान से एम.एस.सी. (M.Sc), पीएच.डी (Ph.D) तक की शिक्षा हासिल की है। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ इनके अन्दर प्रकृति के प्रत्येक आयाम को साहित्यिक एवं आध्यात्मिक चेतना से उन सभी पहलुओं को काव्य के रूप में जनमानस के समक्ष अधिक प्रबलता एवं सार्थकता से रखने का विलक्षण गुण भी विध्यमान है। 'प्रज्ञेय' जी का वैज्ञानिक शोध भी वनों के सरंक्षण में भौतिक विज्ञान की भूमिका पर आधारित है। इनके इस वन विज्ञान शोध कुशलता को देखते हुए, इन्हें हैम्बर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी, केसेसर्ट विश्वविद्यालय बैंकॉक एवं अन्तराष्ट्रीय भौतिक संस्थान, ईटली द्वारा व्याख्यान हेतु आमंत्रित किया जा चुका है। इनके द्वारा जन-मानस में विज्ञान एवं साहित्य के प्रति रूचि बढ़ाने हेतु निरतंर प्रयास किये जा रहे हैं।
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