प्रस्तुत काव्यांजलि लेखक के अनुभूतियों एवं अरुन्तुद कल्पनाओं के कलात्मक प्रतिफलन की रागिनी है | जीवन के अनुभवों में जो कुछ उदात्त है, हृदय के आवेगों में जो त्वरा बसती है, स्वप्न की लहरियों में जो चिकीर्षा छिपी है तथा मन के सन्धान में जो संकल्प निहित है वही चेतना इन कविताओं में रूपायित हुई है | अवचेतन की ग्रंथियों से निःसृत विशुद्ध आनन्द के आह्लाद के अंतरण व उनके सम्प्रेषण से भावकों में आत्मसंसृति का सा तादात्म्य बोध उद्भासित करना इन रचनाओं का मूळ ध्येय है | दर्शन के संस्पर्श, दुःख की उपासना, तत्वों के अभिनिवेश एवं सौन्दर्य के निषेचन से सम्पृक्त एवं अनुस्यूत ये भावप्रवण काव्य-निमिष निर्जरा एवं चिरायु रहें ऐसी कामना रहेगी |
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दीपांकर कौण्डिल्य भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु में भौतिकी विषय के शोधार्थी हैं | साहित्यिक अनुशीलन, दार्शनिक अवगाहन एवं राजनीतिक विवेचना उनके प्रमुख शगल हैं |
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