हास्य और व्यंग्य से सराबोर यह उपन्यास एक सरकारी दफ्तर में हो रहे वाकिओं को हूबहू दर्शाता है। महिमा मंडन और मक्खन तेल अर्पण करने की अनूठी दास्तान। एक नौजवान के नौकरी जॉइन करने से उस सिस्टम में पूरी तरह मिल जाने तक का सफ़र। सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए 100 ग्राम मक्खन की महत्ता को समझना आवश्यक है। बड़े साहब के नख़रे और छोटे साहब के मक्खन के बीच का तालमेल अतुलनीय होता है। यकीनन इस उपन्यास की वजह से मक्खन-तेल के दाम बढ़ जाएँगे इसलिए यह ज्ञान ज़रूरी है कि कब, कहाँ, कैसे और कितनी मात्रा में मक्खन लगाना है। इस उपन्यास के माध्यम से मैं आपको एक नयी दुनिया की सैर कराना चाहूँगा। कुर्सी की पेटियाँ बांध लें! इसलिए नहीं कि आप हवाई जहाज में हैं बल्कि इसलिए कि तेल बहुत है यहाँ! पैर फिसल जाएगा!
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इनका जन्म इलाहाबाद शहर में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा संगम नागरी से प्राप्त करने के पश्चात इन्होने अलग-अलग शहरों में रह कर आगे की शिक्षा प्राप्त की। 2011 में फ़ैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी (FMS-BHU) से मार्केटिंग में एम.बी.ए के बाद अब एक सरकारी बैंक मे अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। पिछले कई वर्षों से फिल्मनगरी मुंबई में
रह रहे हैं। लिखने-पढ़ने में इनकी रुचि बचपन से ही रही और इन्हें हमेशा प्रोत्साहन प्राप्त होता रहा।
नीचे लिखी पंक्तियाँ लेखक का परिचय देने में सक्षम हैं :
‘हर दिन के साथ कुछ नया सीखो
अच्छा लिखो और अच्छा पढ़ो
वक़्त तो वैसे भी गुज़र ही जाना है
कभी बेवक़्त ही इक किताब पढ़ो!’
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