डॅा. दर्शन त्रिपाठी (Ph.D) का प्रस्तुत नव्यतम नाटक ‘तारकामय’ भी इन दोनों नाटकों की परम्परा में अगला चरण है. ममता और भद्रा का संवाद इस नाटक की पूर्ण पीठिका को सीधे ही दर्शक की संवेदनाओं से जोड़ देता है. कथा की अलग-अलग चिंदियां परस्पर जुड़ी हुई दिखाई देती हैं. अदिति और तपस्विनी की उपस्थिति इस नाटक की कलात्मक मर्यादा को रेखांकित करती है. अन्य पात्रों में तारा और चन्द्रदेव इस सम्पूर्ण नाटक को इस तरह गूंथ कर प्रस्तुत करते हैं, जिससे नाटक का परिवेशगत सत्य उद्घाटित होता चला जाता है. ऐसे नाटकों की भाषा भी पात्र की भूमिका में ही अपने महत्त्व को स्थापित करती है. इस दृष्टि से डॅा. दर्शन त्रिपाठी का यह प्रयास बहुत ही विलक्षण है. सम्पूर्ण नाटक का प्रभाव गहन-गम्भीर विषय के साथ अस्मिता को बनाये रखता है. वैदिक बोध के स्वर दर्शक की ज्ञान पिपासा को केवल जिज्ञासा तक ही शांत नहीं रखते बल्कि उसकी संवदेना में नई ऊर्जा से भर देते हैं. यही ऊर्जा डॅा. दर्शन त्रिपाठी की नाटक कला को विलक्षण बनाती है.
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