कुछ दिन, कुछ हफ्ते, कुछ महीने नहीं बल्कि सालों लग जाते हैं खुद से खुद तक का सफर तय करने में। थके हुए कदमों को अगर कोई ईमानदार हमकदम मिल जाये तो सफर आसान और मंज़िल नजदीक नज़र आती है। तलबशुदा कहानी है शिवी और शिवी के जीवन में, ईश्वर की बनायी हुयी कृति आदमी की। पुरुष और मर्द दो पहलू हैं आदमी नाम के सिक्के के। मर्द जो सत्ता चलाता है, पुरुष जो औरत की रुह को छू जाता है। मर्द आधिपत्य जमाता है, पुरुष समर्पण करता है। मर्द ताकत का प्रदर्शन करता है, पुरुष ताकतवर होते हुए भी दिलों को मुस्कुराहट से जीतने का हुनर रखता है। पर ये कहानी इस बात पर कोई बहस नहीं कि मर्द श्रेष्ठ है या पुरुष बल्कि कहानी इस बात पर गहरा जाती है कि नायिका शिवी की जिन्दगी तब क्या मोड़ लेगी जब उसका सामना दोनों से होगा? क्या उसकी जिन्दगी मर्द की परछाई में खो जायेगी या वो पुरुष की हमकदम हो अपनी मंजिल को पा लेगी। ये तो वक्त बतायेगा और वक्त की ये खासियत है कि वो निर्णय कमाल लेता है। तो इस कमाल का आनन्द लेने के लिये पढ़िये तलबशुदा ।
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