सितारगंज एक वास्तविक जगह है जो वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में है। यह उपन्यास वास्तव में सितारगंज के बहाने पूरे भारतवर्ष की कहानी कहता है। यह कहानी आज़ादी के बाद के नेहरुवियन समाजवाद से भूमण्डलीकरण तक के सफर की कहानी भी है। इस उपन्यास के नायक दिनकर और भीम बचपन के दोस्त तो हैं, लेकिन इस सफर में साथी नहीं हैं। दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं लेकिन दोस्ती का रिश्ता बरक़रार है। उपन्यास की धुरी दोनों के साथ बचपन में घटी एक रहस्यमयी घटना है। इस घटना की याद दिनकर और भीम के लिए सिर्फ याद नहीं है बल्कि ज़िंदगी का फलसफा भी है। हालाँकि इस फलसफे की भी दोनों के पास अलग-अलग व्याख्या है।
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लखनऊ में जन्मे और सितारगंज में पले- बढ़े अभिषेक श्रीवास्तव पेशे से बैंकर और स्वभाव से साहित्यकर्मी हैं। समसामयिक विषयों पर पत्र-पत्रिकाओं के डिजिटल संस्करणों में वह लिखते रहे हैं। कवितायेँ और ग़ज़लें लिखना भी उनका शौक रहा है लेकिन कथा साहित्य उनका पहला प्यार है। वह दिल्ली, मुंबई और पंजाब में रह चुके हैं और वर्तमान में राजस्थान में रहते हैं।
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