शैली एक कल्पना है, मेरी कविताओं की प्रेरणा है। शैली-पशुपति की हर रचना में मेरी कल्पना के हर रूप की अभिव्यक्ति है। कवि होने में और कवि हृदय होने में बहुत अन्तर है, शैली इस अन्तर की दूरी को तय करती है। जब वो देवी स्वरुप मेरे सामने होती है तो मेरी कविता देवी महिमा बन जाती है, कभी वह अप्सरा है तो कभी मेरी अर्धांगिनी, कभी मेरी प्रेमिका तो कभी अपनी माँ का प्रेम। उसका हर रूप मुझे नई धारा में कुछ नया लिखने को प्रेरित करता है।
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विवेक कुमार मिश्रा, सी वी रमन कॉलेज, भुबनेश्वर से मरीन इंजीनियरिंग में बी टेक की डिग्री लेने के पश्चात विगत 10 वर्षों से इसी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।
हिन्दी सहित्य में उनका ज्ञान दिनकर, भूषण, भारतेंदु आदि कवियों की रचनाओं तक सीमित है, वे सारी कवितायेँ उनकी प्रेरणा का स्रोत हैं। इनकी रुचि एतिहासिक पुस्तकेँ, पौराणिक कथाओं एवं प्रसंगो को पढ़ना है। उन प्रसंगो में छुपे मानवीय भावों को अपने शब्द प्रदान कर पाठकों के सामने प्रस्तुत करना उनके लेखन का उद्देश्य है।
भारत कथाओं, प्रसंगों एवं दंतकथाओं का देश है और भारत का संस्कार उसका पौराणिक इतिहास है। उनका प्रयास भारत की पौराणिक एवं एतिहासिक कहानियों और प्रसंगों को सरल शब्दों में कविता का रूप देकर आम जन तक पहुँचाना है।
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