‘समत्वं योग उच्यते’ (श्रीमद्भगवद्गीता) । जीवन की चुनौतियों का सामना करते करते समत्व का महत्त्व समझ में आने लगता है। 'समतार्थिता', अर्थात् समता की अर्थिता, समत्व की कामना, केवल कुछ कविताओं का विषय और केवल एक कविता का शीर्षक न होकर इस पूरे कविता-संग्रह, कवि की पहली पुस्तक का शीर्षक भी बन गई है ! कहीं न कहीं समतार्थिता कवि की अधिकतम कृतियों में झलकती है मानो उनका इससे जन्मों का नाता हो।
इस संग्रह में पाठक को विविध विषयों पर नानाविध शैलियों-विधाओं का रसास्वादन मिलेगा । छंदबद्ध भी छंदमुक्त भी! प्राचीन भी अर्वाचीन भी! खिलखिलाती भी सिसकती भी! कवि द्वारा गणित, संगीत, योग में शिक्षा प्राप्त होने के कारण कृतियों पर इनकी छाया का होना स्वाभाविक है । प्राकृत-संस्कृत-निष्ठ ठेठ देसी शब्दावली इन कृतियों की एक विशेषता है । व्युत्पत्ति को ध्यान में रखते हुए, कुछ शब्द कवि के अपने बनाए हुए भी हैं, तो कुछ शब्द दूसरी भारतीय भाषाओं से भी लिए गए हैं । अलंकारों और विशेषतः अनुप्रास से कवि का जो लगाव है वो उनकी रचनाओं से भलीभाँति प्रकट होता है।
'दर्शन दो हनुमान्' और 'हनुमन्नुति' कवि द्वारा उनके इष्ट के चरणकमलों में अर्पित हैं । 'शिवनन्दिनी संगीता' कवि की जन्मदात्री उनकी प्यारी माँ के जन्म का उत्सव है, मंगलगान है! बालकृष्ण की एक काल्पनिक किन्तु विश्वसनीय सुन्दर-सी बाललीला 'माखन-कंदुक' है । संतों की वाणी का वाहन दोहा छंद सहज रूप से ही कवि को बहुत आकर्षता है! 'चिंता छिपकली है' ये रूपक जितना विचित्र है उतना सटीक भी! स्पष्ट है, बरसात कवि को बहुत अच्छी लगती है, चाहे 'बिनरुत बरखा' ही क्यों न हो! रूप-रंग-सौंदर्य को लेकर पक्षपाती विचारों से ऊपर उठने का साधन है 'एक श्यामली'! 'मान्यता और तुम' तो स्वतः स्पष्ट है । ‘जा चुकी है’ बुद्धि, पर उसे लौटा लाने का काम ‘प्रत्युत्तर’ करता है! 'मृति' कवि के बाबा (दादाजी) के चल बसने पर लिखी हुई है । जहाँ 'तानपूरा' एक सपनीला अनुभव है वहीं 'उजाला' एक सच्ची अनुभूति है। माता करजा देवी मुंबई के वळणई गाँव की गाँवदेवी हैं और कवि के कुल के लिए बहुत ही पूजनीय हैं । अवधी में 'श्री करजा देवी चालीसा' रची गई है । श्रीनिवास 'रामानुजन्' कवि के सबसे प्रिय गणितशास्त्रज्ञ हैं । उनकी दयादृष्टि ने गणितीय संशोधन में भी कवि का मार्ग प्रशस्त किया है । संस्कृत में देवस्तव भी रचे गए हैं । कवि के इष्ट के इष्ट को ‘रमारामस्तोत्रम्’ और सर्ववत्सला गोमाता के पदपद्मों में ‘गोगुणगानम्’ समर्पित है।
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