जीवन का आदर्श यथार्थ के झंझावातों से गुजरता है, और भावनाओं के थपेड़ों को बर्दाश्त करता है. जीवन समय के अनुक्रम में खुद को संरेखित करता हुआ घटनाओं का सम्मुच्चय मात्र ही तो होता है. आकाश के आधुनिक संकल्पना की तरह जीवन की संरचना भी एक फोमाइड के माफिक होता है. उलझा हुआ बहुविमीय संजाल, जिसमें समय और स्थान का द्वैत ख़त्म हो जाता है. सूक्ष्म स्तर पर केवल घटनाएं होती हैं जो आपके जीवन के दशा और दिशा को नियत कर रही होती हैं. आपके जीवन के बहुतेरे आदर्श होंगे, पर आदर्श आदर्श कहाँ रह जाते हैं? जीवन का यथार्थ, घटना सम्मुच्चय आदर्शों को विकृत करते हैं और आपका बसा बसाया संसार उजड़ जाता है. प्रस्तुत पुस्तक भी जीवन के आदर्शों को विकृत होते जाने की एक रुपरेखा ही है. जीवन में सर्वोच्च आदर्श के रूप में प्रेम से बेहतर और भला क्या हो सकता है? प्रेम जो निरपेक्ष होता है. अनायास सा एक घटना के रूप में घटित प्रेम आपके जीवन को सम्यक रूप से प्रभावित करता है. आधुनिक विज्ञान की एक संकल्पना है कि समय गुरुत्व के प्रभाव में संकुचित हो जाता है. मतलब यहाँ धरती पर जो समय फ़ैल कर हजारों लाखों वर्षों का विस्तार लेकर इतराता है वहीं समय कहीं दूर कृष्ण विवर के इवेंट होराइजन के अंदर जाते ही लाज का घुंघट ओढ़ कर बैठ जाता है. सेकेण्ड में लाखों वर्षों का व्यतीत हो जाना, ये किसी जादुई प्रभाव की तरह ही लगता है न! प्रेम में भी आप एक क्षण में सदियाँ जीने का दावा करते हैं. तो क्या प्रेम भी एक वृहत गुरुत्व प्रभाव वाला इवेंट होराइजन आपके जीवन में नहीं संरचित करता है.
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जन्म मूलतः कैमूर के सुदूर पहाड़ी अंचलों में बसे गाँव सोनबरसा में। शिक्षा दीक्षा, जैसाकि एक स्वाभाविक नियति होती है, प्रवासी छात्र के रूप में इलाहबाद विश्विद्यालय से। विज्ञान स्नातक होने के उपरांत सामाजिक इच्छा सामान्य के बहाव में रोजगारोन्मुख एक बड़े नाम पर छोटे फ़ीस वाले कोर्स में दाखिला लिया, पर बहता मन हमें बाजार की जगह पुनः विश्वविद्यालय तक खींच लाया। तब तक नियति ने दोनों हाथों से सरकारी कही जाने वाली नौकरियां उड़ेल दी। फिर क्या था कला और विज्ञान के बीच झूलता यायावर लेखा खातों के बीच उलझ कर रोजी रोटी में लग गया। सम्प्रति तथाकथित उन्हीं रोजी-रोटी वाले कार्यों में पूर्णकालिक रूप से लगा हुआ लोकसेवक है।
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