मैं सपनों को सच होते हुए नहीं देखना चाहता | ये दोनों मुझे अलग-अलग ही रहते हुए पसंद आते हैं | मुझे बस उस क्षण की आशा रहती है जब ये दोनों मिलें और जहाँ मिलें बस वहीं ठहर जाएँ | सपनों का अस्तित्व बना रहे और सच काबू में रहे ! सपना उस किताब सा है जो अपने आखिरी पन्नों में सिमटना नहीं चाहती और सच उसके उस लेखक सा है जो किताब के अंत का दृश्य ढूँढता हुआ लिख रहा होता है | सपनों के कारण ही मैं सच जी रहा होता हूँ मगर सच ही न हो अगर तो सपने कहाँ सपने से लगेंगे ? - उत्कर्ष वर्धन द्विवेदी
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उत्कर्ष वर्धन द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में सन 1995 में हुआ पर पैतृक शहर इनका मिर्ज़ापुर है | इसके बाद इन्होनें अपना छात्र जीवन छत्तीसगढ़ के शहर भिलाई में पूरा किया | इसी दौरान ही इन्हें लिखने और पढ़ने का शौक हुआ और कुछ छिटपुट इधर-उधर लिखना शुरू कर दिया | हालांकि पूरी कुशलता से लिखना इन्होनें अपने इंजीनियरिंग के दिनों में शुरू किया | इनका यूट्यूब पर "हर कश में उत्कर्ष - Har Kash Mein Utkarsh" कविताओं-कहानियों का एक चैनल भी है |
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