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मिहिर छंगाणी का जन्म 1991 में जोधपुर शहर में हुआ और वह बारहवीं कक्षा तक वहीं पढ़े। उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री देहरादून की University of Petroleum and Energy Studies से प्राप्त की और उसके पश्‍चात् Goa Institute of Management से मैनेजमेंट की डिग्री हासिल की। आजकल मिहिर मानव संसाधन के क्षेत्र में एक सलाहकार की नौकरी कर रहे हैं। 'रोशनी में दरार' उनकी कविताओं का संकलन है।

 

 

रोशनी के माने खुशियों से या ऐसी ज़िन्दगी से है जिसे आप जीना चाहते हैं, और फिर दरार समझने में किसी स्पष्टीकरण की ज़रूरत महसूस नहीं होती - ये वो साया है जिसके रहते आपकी रोशनी कभी पूरी नहीं हो सकती। कुछ लोगों का सोचना है कि दरार का सम्बन्ध मोहब्बत से होगा, पर इस किताब में ऐसा नहीं है। जैसा उर्दू के प्रख्यात शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने बहुत खूब कहा है - 'और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा' - ये कविताएँ आपको कुछ ऐसे दुःख और परेशानियों (या यूँ कहें कि कुछ ऐसी ‘दरारों’) से रूबरू करवाएँगी जो आज इंसान को घेरे हुए है। अब चाहे वो नौकरी में परेशानी की दरार हो, मानसिक तनाव की दरार हो, खुद ही को ना समझ पाने की दरार हो, दूसरों द्वारा गलत समझे जाने की दरार हो, माँ-बाप के बूढ़े होते जाने की दरार हो, देश के गणतंत्र के बूढ़े होने की दरार हो, या कोई और दरार…
हालांकि इस पुस्तक के रंगमंच की नायक दरारें हैं, मगर इसमें रोशनी भी दिखाई देती है जिसमें से वो दरारें झाँक रही हैं। इस किताब को लिखते समय आसान भाषा का इस्तेमाल किया गया है और अगर कहीं कुछ ज़रा मुश्किल शब्द आए हैं तो उनके अर्थ भी दिए गए हैं, ताकि पाठक को पढ़ने में कोई दरार न आए।

Roshni Mein Daraar

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