यूँ तो देश में जातिवाद पर काफ़ी कहानियाँ लिखी और पढ़ी जाती हैं। ऐसी कई कहानियाँ हैं जो कई सालों से बनती आ रहीं हैं। हर बार कोई न कोई कहानी लिखता है। समय बदलता हैं, कहानी के किरदार बदलते हैं पर अगर कुछ नहीं बदलता तो वह है कहानी की कभी न मिटने वाली सच्चाई जो सदियों से ज़िन्दा है। हर कहानी में पिछड़ी जाति वालों को सहानुभूति का पात्र बनाया जाता है। पर आज के समय जहाँ पचास फीसदी आरक्षण है, क्या उससे जातीय भेदभाव ख़त्म हुआ?यूँ तो देश में जातिवाद पर काफ़ी कहानियाँ लिखी और पढ़ी जाती हैं। ऐसी कई कहानियाँ हैं जो कई सालों से बनती आ रहीं हैं। हर बार कोई न कोई कहानी लिखता है। समय बदलता हैं, कहानी के किरदार बदलते हैं पर अगर कुछ नहीं बदलता तो वह है कहानी की कभी न मिटने वाली सच्चाई जो सदियों से ज़िन्दा है। हर कहानी में पिछड़ी जाति वालों को सहानुभूति का पात्र बनाया जाता है। पर आज के समय जहाँ पचास फीसदी आरक्षण है, क्या उससे जातीय भेदभाव ख़त्म हुआ?
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युवा हिन्दी लेखक मनु सौंखला हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक़ रखते हैं। इन्होंने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हमीरपुर (NIT - National Institute of Technology, Hamirpur) से स्नातक (B.Tech) की शिक्षा हासिल की है। तत्पश्चात् मनु सौंखला जी सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सैक्टर) की एक ऑइल कम्पनी में कार्यरत हैं। मनु जी अपने सामाजिक लेखन और समाज में फ़ैली अव्यवस्थाओं के ख़िलाफ़ लिखने के लिए विशेष तौर पर जाने जाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक इनकी पहली हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाली पुस्तक है।
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