दरअसल यह छोटी-सी नाट्यरचना, न तो ‘श्रीराम’ के जीवनी से मिलती-जुलती है और न हीं ‘राज्य’ की शासन-व्यवस्था से। मेरी यह रचना, न तो शुक्लोत्तरयुगीन बिहार के महान साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी की नाट्य-रचना ‘रामराज्य’ से मेल खाती है और न ही छत्तीसगढ़ के महान न्यायविद व साहित्यकार डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र की रचना ‘सुराज्य और रामराज्य’ से। यह रचना, न तो महाराष्ट्र के प्रसिद्ध रंगमंचकार बलवंत पांडुरंग किर्लोस्कर (अन्ना साहेब किर्लोस्कर के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध) रचित नाटक ‘राम राज्य वियोग’ से मेल खाती है और न हीं छत्तीसगढ़ के साहित्यकार पं. मलिक राम त्रिवेदी के नाटक ‘रामराज्य’ से।
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श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय, भारत सरकार के ई.एस.आई.सी (ESIC - कर्मचारी राज्य बीमा निगम) में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत, वरिष्ठ हिन्दी लेखक गंवरू प्रमोद (प्रमोद कुमार) पटना, बिहार से ताल्लुक रखते हैं। प्रमोद जी विशेष तौर पर समसामयिक विषयों पर लेख लिखते रहते हैं। कविता एवं कहानी लेखन में भी इनका विशेष योगदान रहा है। प्रमोद जी किसी कार्य को समय सीमा के अंदर कैसे सम्पन्न किया जाए, ऐसे विषयों पर लोगों को सलाह भी देते हैं। प्रमोद जी एक प्रेरक वक्ता के तौर पर पहचाने जाते हैं।
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