“कहते हैं कि रामचरित मानस भगवान शंकर और भगवती पार्वती के बीच कैलाश पर्वत पर हुआ संवाद है। हिमालय के सर्वोच्च शिखर कैलाश पर बैठने की सार्थकता तभी है जब हमारी जिज्ञासा और समाधान का विषय राम हों। यदि श्रद्धा और विश्वास का स्वरुप है तो अमृतमंथन भी यहीं है। राम चरित मानस की यह संवाद गाथा उन विशेष संवादों को प्रदर्शित करती है जो कहानी को एक नया मोड़ प्रदान करते हैं। जब राम चरित मानस के संवादों की बारीकी से जांच की जाती है, तो यह बात सामने आती है कि बहुत से संवाद ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कहानी को गति प्रदान करते हैं। रामचरित मानस में संवाद के रूप में मनुष्य ही नहीं, देवता और दानव ही नहीं, बल्कि उनसे भी बुरे चरित्रों को स्थान दिया गया है। ये संवाद पाठक के सामने शील, गुण, मर्यादा, नम्रता, उग्रता, कुटिलता, ईष्या, मोह, मद, मत्सर, विवेक और अविवेक आदि विशेषताओं को पाठकों के सामने लाते हैं।” - डॉ. शिव प्रकाश
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