‘कुरआन‘ तमाम इंसानों के लिए अल्लाह का आखि़री पैग़ाम है। यह अल्लाह की तरफ से, अल्लाह के आखि़री पैग़म्बर ‘मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम‘ पर सातवीं सदी ईस्वी के शुरूआत में नाज़िल (अवतरित) हुआ था। ‘जिब्रील‘ नाम के एक खास फ़रिश्ते के ज़रिए से कुरआन को बड़े एहतिमाम के साथ 23 वर्षों में पूरा उतारा गया। यह अपनी मूल अरबी में आज भी पूरी तरह महफूज़ है। दुनिया के इलहामी साहित्य में अब इकलौती यही किताब है जिसके बारे में यह बात पूरे यक़ीन के साथ कही जा सकती है कि यह जिस तरह दी गई थी, बगै़र किसी मामूली बदलाव के बिल्कुल उसी तरह, उसी में और उसी तरतीब (क्रम) के साथ, इस वक़्त भी हमारे पास मौजूद है। इतिहासिक और वैज्ञानिक स्तर पर यह साबित हो चुका है कि पृथ्वी पर आज कुरआन सबसे प्रमाणिक और शुद्ध आसमानी किताब है। कुरआन सही और गलत में फर्क बताती है तथा इंसानियत सिखाती है। कुरआन खुदा के ऐहसानों का अबदी (स्थाई) ख़जाना है। कुरआन खुदा का परिचय है। यह खुदा और बंदे का मिलन-स्थल है।
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