"पराक्रमो विजयते" उसके सेना में बिताए सेवाकाल का संस्मरण है, जो मुख्यतः 1971 के युद्ध के बाद हुए, तीन मुख्य अभियानों क्रमशः सियाचिन ग्लेशियर, श्रीलंका और संयुक्त राष्ट्र संघ के अभियान और कई अन्य अभियानों से संबंधित है। उसने अपनी पुस्तक में अपनी असल ज़िन्दगी की कहानी और उससे जुड़े तथ्यों को, जो शायद दूसरों की जानकारी में ना हो ख़ासकर नई पीढ़ी की जानकारी में, उन्हें, इस पुस्तक में समेटा है। उसने यह किताब आसान और स्पष्ट भाषा में लिखी है, ताकि सभी इसके तथ्यों और वास्तविकता को समझ सकें। उपरोक्त इन अभियानों के अनुभव के अलावा, उसके पास उग्रवाद विरोधी अभियानों और फौजी अभियानों को चलाने का बृहद अनुभव है। यह कहने की ज़रूरत नहीं है, कि पुस्तक न सिर्फ नई पीढ़ी के अफसरों को प्रभावित करेगी बल्कि नवयुवकों और पुराने लोगों को भी प्रभावित करेगी। - मेजर जनरल संजय सोई (सेवानिवृत्त)
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कर्नल अरुण परासर रांची के सेंट जॉन्स स्कूल और सेंट जेवियर्स कॉलेज के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने अपना स्नातक अंग्रेजी में किया और उसके बाद भारतीय सेना में शामिल हो गए। उन्होंने 35 वर्षों तक संगठन की सेवा की और 2013 में सक्रिय सेवा से सेवानिवृत्त हुए। एक सैनिक होने के अलावा, 1982 से भारतीय सेन्य सेवा के संचालन को देखा और इसका हिस्सा बने। वह गर्व महसूस करता है और अपने पेशेवर जीवन को संस्मरण के रूप में लिखित शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करके देखता है। वह रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज के पूर्व छात्र रहे हैं, उन्होंने अपनी 35 साल की पेशेवर यात्रा में विभिन्न नियुक्तियां की हैं। वर्तमान में उन्होंने उपाख्यानों को लिखकर समाज को देने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया था, चाहे वह किसी भी रूप में हो। कहानी का सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि इसने आकार ले लिया है।
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