यूँ तो हर रचना; जो छात्र जीवन और छात्र राजनीति के बारे में लिखी गई है उसमें बातों के साथ ‘खिलकोंडी’ एक सामान्य कला है, लेकिन यह कहानी मेडिकल कॉलेज के कुछ अनछुए पहलुओं को उधेड़ती हुई किस्सागोई से आगे तक की है। रैगिंग हमेशा ही ग़लत है; को ग़लत साबित करने से लेकर मेडिकल कॉलेज के नवागंतुक ‘फ़्रेशर्स’ के मानवीय भावों को कुरेदते हुए उन्हें मेडिकल कॉलेज की दशकों पुरानी परिपाटियों में ढलने का चित्रण है यह। ऐसा क्या है इस पेशे में जो अभी तक आम जन-मानस के लिए अबूझ है? क्यों एक धीर-गंभीर डॉक्टर के लिए भी उसका मेडिकल कॉलेज और हॉस्टल में बिताया हर पल उसे हमेशा याद रहता है? मेडिकल कॉलेज में ‘लफंडरगिरी’ करने से लेकर, एक भावनात्मक चिकित्सक या ‘भगवान’ बनने तक आए परिवर्तनों के अनछुए पहलुओं को उजागर करती ऐसी कहानी, जहाँ ये समरवीर और सिमरन की उतार-चढ़ाव वाली प्रेम कहानी से भी आगे नरसी और रूपा के बाल-विवाह के बाद के प्रेम की अभिव्यक्ति है। जहाँ ‘जीवन अनिश्चितताओं का पिटारा है’ के कथन को मेडिकल कॉलेज की छात्र राजनीति के हल्के फुल्के अनुभवों के ‘हंसगुल्लों’ के रूप में परोसा गया है, वहीं बाल-विवाह जैसी कुप्रथा को भी नियति मानकर, सामाजिक तानेबाने को निभाते हुए, उसमें अपना प्यार ढूंढने की कोशिश भी की गई है। संक्षेप में ‘रैगिंग’ की व्यंग्यात्मक चीरफाड़, मेडिकल स्टूडेंट की मानवीय भावनाओं, छात्र राजनीति और प्यार के विभिन्न रूपों का संकलन है यह उपन्यास।
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लेखक डॉ.पृथ्वीराज सिंह का जन्म राजस्थान के भरतपुर में हुआ। ग्रामीण पृष्ठभूमि के कारण ‘कर्मवाद’ में विश्वास रखने वाले, पढ़ाई में औसत रहे लेखक को नियति के सोपानों ने चिकित्सक बना दिया। उदयपुर के मेडिकल कॉलेज से MBBS के दौरान जीवन के उन दिनों को ‘हल्के’ में लेने के कारण उन्हें ‘भारी’ अनुभव हुए। उस दौरान मेडिकल की किताबों से ज़्यादा साहित्य पढ़ने की रुचि रही थी। कभी-कभार कुछ कवितायें लिखकर अपनी मित्र मंडली में उन्हें सुनाने से जो वाहवाही मिली, उस से लेखक की लेखन में रुचि बढ़ गयी। दिल्ली के RML Hospital and PGIMER से M.S (ENT) करते हुए भी समय निकाल कर लेखनी की धार को विचारों से मज़बूत किया। लेकिन फिर करियर की भागदौड़ के सात साल में तो लेखनी की स्याही ही सूखने को आ गयी। वो तो भला हो ‘कोरोना’ त्रासदी का जब एक बार पुनः लेखनी के लिए भरपूर वक़्त मिला और अपने लेखन को प्रकाशित करने की इच्छा के दरम्यान पहला उपन्यास ‘फ़र्स्ट एंड हाफ़ डार्लिंग’ स्वप्रकाशित करवाया, जो विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म पर ‘बेस्टसेलर’ की लिस्ट में भी शामिल रहा। लेखक का यह दूसरा उपन्यास भी मेडिकल कॉलेज के संस्मरणों पर आधारित शृंखला का ही भाग है।
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