जब कविता की बात करते हैं तो कदाचित जीवन की सच्चाई की परतों को खोलने और व्यक्त करने में उसका कोई सानी नहीं है। कविता चाहे छोटी हो या बड़ी, वह कहीं–न–कहीं जीवन के सत्य को उद्घाटित करती है । जीवन के अनुभव ने हमें सिखाया है कि सत्य कड़वा होता है। प्रायः हम इससे बचने का ही प्रयास करते हैं , पर लम्बे समय तक अगर सत्य को उपेक्षित किया जाए तो परिणाम हमेशा घातक होते हैं। यह बात व्यक्ति, संस्था, देश और दुनिया पर लागू होती है । वास्तव में सत्य तो हमेशा सत्य ही रहेगा, हम चाहे उसे किसी भी प्रकार से देखें, न देखें, महसूस करें, न करें, व्याख्यायित करें या न करें उसके अस्तित्व पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
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1973 में जन्मे तुलसा दत्त तिवारी विगत दो दशकों से लेखन, संपादन, अनुवाद आदि से जुड़े हैं I वह तीन विषयों हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य एवं जनसंचार व पत्रकारिता में स्नातकोत्तर हैं I कविता को ‘स्वांत सुखाय’ की बजाय ‘बहुजन हिताय’ मानने के पक्षधर हैं I वह कविता को जीवन के विविध अनुभवों को व्यक्त करने का माध्यम तो मानते हैं पर उससे बढ़कर उनके लिए कविता सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का एक सशक्त अस्त्र भी है I उनका विश्वास है कि कविता बंधनों को तोड़ती है, मानव को मानव से जोड़ती है और जीवन के नए रहस्यों को खोलती है, कम बोलकर भी सब कुछ बोलती है I नया सूरज चाहिए’ में शामिल कविताएँ भोगे हुए और देखे हुए यथार्थ की ही अभिव्यक्ति हैं, कहा जाए तो ज्यादा सही होगा I
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