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प्रेम ..जैसे त्याग राधा का ,भक्ति मीरा की,विश्वास शबरी का , जाने किस युग से कभी बूंद-  बूंद मेह सा तो कभी धुआंधार वर्षा की तरह बरस कर  कितने ही मरु से जीवन को सराबोर कर रहा था। अब,इस कलयुग मे लेकिन केवल प्रेम ही नही वरन मानवता भी जैसे मोह - माया की चाशनी में डूबी मानो इंस्टैंट 'मुरब्बा' बन कर रह गई ,क्या फिर भी इस युग मे 'मोक्ष' का मिलना संभव है?
 

Murabba Se Moksha Tak

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