मैंने पूरी ज़िंदगी नहीं देखी, पर जितनी भी देखी है उनसे काफी कुछ सीखा है। एहसास, तजुर्बा, उम्मीद और उन्ही उम्मीदों के साथ चलती हुई ज़िंदगी काफी कुछ सीखा जाती है। हमारे रास्ते भी तब ही चलते हैं जब हम चलते हैं। मसला ये नहीं है कि ज़िंदगी कैसी है, मसला ये है कि हम कैसे हैं? उम्मीद-नाउमीद, सुकून-बेचौनी, उतार-चढ़ाव ये सब हमारा हिस्सा हैं, ये सब हम हैं। ज़िंदगी हमें नहीं, हम ज़िंदगी बनाते हैं। ज़िंदगी हमें नहीं, हम जिंदगी जीते हैं! अपने कुछ इन्ही ख़यालों को मैंने पन्नों पर उतारने की कोशिश की है। कुछ सीख जो सीखी और कुछ रास्ते जो चले, उन्हीं तजुर्बां को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है अपनी इस किताब में। मेरा नाम पल्लवी कुमारी है और मैं पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। कविता, ग़ज़ल, शायरी, पेंटिंग, फोटोग्राफी और संगीत में मेरी रुचि हमेशा से ही रही है। मेरा मानना है कि बहुत रंग है दुनिया में रंगने के लिया, ज़िंदगी को किसी एक ही रंग से क्यूं रंगे? और इसीलिए मैं कोशिश करती हूँ कि जितना हो सके ख़ुदको अनेक रंगों से मिला सकूँ, ख़ुदको काबिल बना सकूँ।
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