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श्री रमेश चन्द्र निरन्तर लिख रहे हैं। मैने इनकी रचनाओं पर गौर किया जो समाज की विसंगतियों पर प्रहार करती हैं। उपन्यास तरायल, विधवा के आँसू, बालम परदेशी, कुरूप वधू, बँटवारा... इत्यादि इनकी सामाजिक चेतना का परिचय देते है, जो प्रशंसनीय हैं। इन्होंने भोजपुरी साहित्य को आगे बढ़ाने का भी काम किया है और इसके विकास में जागरूकता पैदा की है, जो आशा जगाती है। उम्मीद करता हूँ कि उनकी प्रगतिशील विचारधारा आगे रचनाओं में सम्प्रेषित होती रहेगी। - अमरकान्त (ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कथाकार)
 

Meri Ikkis Kahaniyan

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