श्री संत कबीरदास जी के एक बहुप्रचलित दोहे ‘मन के मते न चालिये, मन के मते अनेक’ से संबंध रखता यह शीर्षक, एक ऐसा हिंदी ‘कविता-संग्रह’ है, जो लेखक ही नहीं बल्कि पाठकों के हज़ार मनों की उपज है। ये लेखनी हर उस आत्मा से जुड़ी है जो सोच तो बहुत कुछ सकती है, पर उन विचारों को शब्दों में उकेर नहीं पाती। ये संकलन अपने आपमें एक ऐसी विविधता रखता है, जो हर वो मनुष्य के भाव को तराशता है, जिसे व्यक्त किया जाना आवश्यक है।
Mann Ke Mate Anek
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