हम हमेशा एक ऐसे शहर की तलाश में रहते हैं जहां हमें कोई भी नहीं जानता हो। ख़ुद सोचिए एक ऐसे शहर में
रहना कितना आनंददायक होगा जहां आप किसी से भी परिचित ना हो। केशव भी अपने पिता से भागता, ऐसे ही एक
शहर की तलाश करता हुआ दिल्ली आ पहुंचा जहां उसे सबकुछ तो मिला सिवाए प्रेम के।
यह कहानी उसी शहर के नाम है जिसने केशव को मोहब्बत के सिवा सबकुछ दिया।--
बिहार के पुपरी में पैदा हुए रोहन कुमार पिछले छह सालों से रंगमंच से जुड़े हुए हैं। कॉलेज के दिनों से ही इनकी रुचि अभिनय के साथ – साथ कविता, कहानी और नाटक लिखने में रही है। साल 2018 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद “परिंदे थिएटर ग्रुप” से छात्र के तौर पर जुड़ें थे और अब वहीं नए बच्चों को अभिनय सिखाते हैं। “मल्कागंज वाला देवदास” इनका पहला उपन्यास है। अभी तक तीन नाटक लिख चुके हैं जिसका मंचन इन्होंने अपने ही निर्देशन में किया है।
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