जो पौराणिक कथा आपको यहाँ बताई जा रही है, वह पुरी के पवित्र शहर के ग़ौरव, भगवान जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर से जुड़ी हुई है और देवी लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी या पुरी मंदिर के संदर्भ में भगवान जगन्नाथ की पत्नी के आस-पास घूमती है।
इस ग्रंथ को लिखने की प्रेरणा केवल बलराम दास की यह इच्छा ही नहीं थी कि पुरी के भव्य मंदिर से जुड़ी एक लोकप्रिय किंवदंती को समकालीन और भावी पीढ़ियों के उपयोग के लिए लिखित रूप दिया जाए, बल्कि वे किंवदंती को सामाजिक सुधारों के एक साधन के रूप में भी प्रस्तुत करना चाहते थे।
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सरकारी बैंक में उच्च पदस्थ, वरिष्ठ लेखक निहार शतपथी जी अंग्रेज़ी साहित्य में परास्नातक हैं। शतपथी जी ने अपने जीवन की शुरुआत एक अग्रेज़ी अख़बार में सम्पादकीय डेस्क से की थी। तत्पश्चात् सरकारी बैंक से जुड़े और विभिन्न पदों पर कार्य किया। इसी दौरान इन्होंने व्यवसाय प्रबन्धन एवं बैंकिंग में अतिरिक्त शिक्षा भी हासिल की। इनके द्वारा सामाजिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर लिखे कई लेख अख़बारों और जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी पहली प्रकाशित पुस्तक, लघु कथाओं का एक संकलन, इनकी मातृभाषा ओडिया में वर्ष 2005 में प्रकाशित हुई थी। शतपथी जी को लघु फिल्मों का निर्देशन, वीडियो वृत्तचित्र एवं फिल्म समीक्षा लिखने का ख़ासा शौक है। शतपथी जी अपने वेब पोर्टल के माध्यम से ओडिशा के पारंपरिक व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं।
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