कहानियाँ हमेशा से कुछ कही और कुछ सुनी सी होती है। क्योकि कहानियाँ हमारे आपके हम सब के बीच में ही रहती हैं। कहते हैं हर एक के पास एक कहानी तो होती ही है जिसे वह लोगो से साझा कर सके। किस्सागोई बचपन में माँ की कहानियों से शुरू होती है और दोस्तों, पास पड़ोस के लोगो से होते हुए स्कूल, कॉलेज के गलियारों से होती हुई, बस और ट्रैन से सफर करती हुई, पानी में तैर कर, हवाओं के उड़ कर खुश्बू सी फ़ैल जाती है।
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वरिष्ठ हिन्दी लेखक अद्वैत आनंद एक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में आईटी प्रबंधक हैं। इनके बाप दादा पक्के पूरुब में यु पी - बिहार बॉर्डर के पास के रहने वाले थे और जन्म - कर्म धुर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों के बीच हुआ जहां उनके जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को पूरबिया कहते थे। नौकरी का ज्यादातर हिस्सा मध्य उत्तर प्रदेश में निकल गया। अद्वैत जी बताते हैं कि उन्हें बचपन में जब भी चाचा चौधरी पढ़ने से समय बचता तो प्रेम चन्द्र की कहानियाँ पढ़ डालते थे। इंटर पास करते करते ही हिंदी साहित्य का कीड़ा लग गया। राग दरबारी, तमस, बाण भट्ट की आत्मकथा और गुनाहों का देवता सब पढ़ डाला।
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