युद्ध हो या कोई भी आपातकाल, उसके दौरान, मानवीय स्थिति का लेखा जोखा होती है उस दौर की कहानियाँ,कविताएं उस दौर के गीत या दैनंदिनी । संयुक्त परिवार में रहने वाली, एक मध्यमवर्गीय शहरी महिला किस कदर अपने सामने कोरोना काल को पसरते देखती है और उसके अपने अंदरूनी और बाहरी संसार मे हुए उथल पुथल को जिस स्पंदन से महसूस करती है, उसी का हासिल है यह कविता संग्रह। जिसकी हर कविता उम्मीद से है जिसके गर्भ में अजन्मी अनकही कहानियाँ करवट ले रही है।
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छुटपन से ही कहानियाँ सुनाने और कविताएं लिखने का शौक रखने वाली वैदेही, हर अच्छे बुरे समय में कविता में व्यक्त होना पसंद करती है! एक साथ कई कई किरदारों की कहानियों में, भावनाओं की परतों के बीच जीती है। बारह साल विविध व्यावसायिक क्षेत्रों में काम करने के बाद, भारत और विदेश के भिन्न शहरों की खाक छानते हुए, अपने जीवन के प्रयोजन को ढूंढती वैदेही, भारतीय फिल्म एवं टेलिविज़न संस्थान के दर पर आ पहुंची। FTII से पटकथा लेखन में शिक्षा प्राप्त की। पिछले सात वर्षों से पटकथा लेखन का अध्ययन, अध्यापन के जरिए करने वाली वैदेही, अब पटकथा लेखन करती हैं। प्रवास, संगीत, फिल्में, खेल, मित्र और परिवार में, जीवन का उत्सव मनाती, वैदेही, पुणे में रहती है।
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