ग्रामीण अँचल की माटी की गंध और उस के परिवेश में पलती रूढ़िवादिता, संकीर्णता, जातिवाद एवं दलित शोषितों के प्रति दुर्भावनाएँ एवं अवहेलना की ज्वाला ने सद्भाव एवं परस्पर स्नेह की भावनाओं को झुलसा दिया है। लेखक इन पर बेबाक तरीके से प्रहार करता है। इसके साथ ही सभ्य समाज में व्याप्त व्यभिचार और दूषित शहरी संस्कृति में पनपने वाले अमानवीय कृत्यों पर भी गहरी चोंट करता है। ग्रामीण एवं नगरीय समस्याओं ने जो विसंगतियाँ, विकृतियाँ एवं विद्रुपताऐं उत्पन्न हुई है, उन पर भी लेखक बड़ी साफगोई से अपना बयान दर्ज करता है। निश्चित रूप से इस संग्रह की सहज एवं संप्रेषणीय कहानियाँ पाठक के अन्र्तमन को झकझोरने की अद्भुत क्षमता रखती है।
Khandit Hoti'n Shashwat Avdharnaayen
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