इस किताब को लिखने का ख़याल मेरे दिमाग में यहाँ से आया कि जब मैंने देखा कि शहरों के ज्यादातर लोग अपनी पुरानी भारतीय परम्पराओं, मान्यताओं, चीजों को छोड़ कर बिना अपना दिमाग लगाये, अंधे होकर विदेशी परम्पराओं, मान्यताओं, चीजों को अपना रहे हैं और अपने आपको बहुत मॉडर्न समझ रहे हैं और उन गाँव के लोगों को जो अपनी पुरानी भारतीय परम्पराओं और मान्यताओं को मान रहे हैं उन्हें गवार, देहाती और बेवकूफ समझ रहे हैं। मैंने देखा कि शहर वाले अपनी ही पुरानी भारतीय परम्पराओं, मान्यताओं, चीजों का मजाक उड़ाते हैं। उनको अंधविश्वास, बेकार, फालतू समझते हैं। तब मैंने तय किया कि उन सभी को बताऊँगा कि हमारी पुरानी भारतीय परम्परायें, मान्यतायें अंधविश्वास नहीं हैं बल्कि उनके पीछे एक विज्ञान (साइंस) है। हमारी भारतीय परम्पराओं को बनाने वाले बेवकूफ नहीं बल्कि बहुत बुद्धिमान थे।
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युवा लेखक संचित गुप्ता कस्बा कुरारा, जिला हमीरपुर, उत्तरप्रदेश के निवासी हैं। इनका जन्म 30 नवंबर 1995 को कुरारा में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा शिशु शिक्षा निकेतन कुरारा से हुई है और आगे की पढाई जगन्नाथ विद्या मंदिर कुरारा एवं भानी देवी गोयल सरस्वती विद्या मंदिर झांसी से हुई है। इसके बाद इनका दाखिला बुंदेलखंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, झांसी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में हुआ था। पिता के न रहने के बाद उसे पाँचवें सेमेस्टर में छोड़ना पड़ा और फिर इन्होंने अपने पिता का गेस्ट हाउस का व्यापार सँभाला, जो आज इनका मुख्य व्यापार है। इन्हें लिखने का शौक बीटेक के शुरुआती दिनों से ही लग गया था।
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