कभी-कभी ज़िंदगी एक ऐसे मोड़ पर आ जाती है जहाँ हर रास्ता बंद सा लगता है, और दिल की आवाज़ भी खोई हुई महसूस होती है। भीतर एक गहरी खामोशी बस जाती है, जैसे कोई अपना ही साया साथ छोड़ गया हो। दर्द इस कदर बढ़ जाता है कि सांस लेना भी भारी लगने लगता है, और मन बस एक पल के लिए इस तकलीफ से आज़ादी चाहता है। लेकिन शायद यही वो लम्हा होता है जब हमें रुककर सोचना चाहिए—क्या वाकई यह अंत है, या बस एक नया मोड़? दर्द को अपने अंदर दबाने के बजाय, उसे शब्दों में ढालना, किसी अपने से साझा करना, शायद एक नई उम्मीद जगा सकता है। क्योंकि हर अंधेरे के बाद एक सुबह जरूर आती है, और शायद वो सुबह हमारी ही कहानी का नया अध्याय हो।
Kamra Ekant Ya Akelapan
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