कविताएँ मूलतः भाव-प्रधान होती हैं। कवि जब कोई कविता रच रहा होता है तो उसका मन किसी विशेष मनोवेग, भाव अथवा रस से भरा होता है। भाव अथवा रस से भरे होने के कारण कविताएँ प्रायः मनोरंजक भी होती हैं। परंतु, मनोविनोद या मनोरंजन ही काव्य-कला का उद्देश्य नहीं।
काव्य-रचना का अंतिम उद्देश्य है- सत्य की साधना। वास्तव में प्रत्येक कला का यही अंतिम उद्देश्य है एवं इसी उद्देश्य में सबका परम हित है। महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास से लेकर कालिदास, तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास, रहीम से लेकर गुरुदेव रवींद्रनाथ ने भी तो काव्य-कला के ही माध्यम से अपनी-अपनी साधना की। इस पुस्तक में आत्म-मंथन तथा जागरण की कवितायें भी इसी उद्देश्य से प्रेरित हैं। परंतु, शब्द, शैली तथा लेखनी का तर्ज आधुनिक समयानुसार है।
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युवा लेखक सुकांत रंजन मूलतः रामनगर, पश्चिम चंपारण, बिहार से ताल्लुक रखते हैं। लगभग 10 सालों से केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत जीएसटी एवं कस्टम विभाग में निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं। साथ ही साथ पिछले 12 सालों से अपने मूलस्थान रामनगर में एक पुस्तकालय और सरकारी नौकरी के लिए स्थानीय युवाओं के सहायतार्थ एक अध्ययन केंद्र के निर्देशन का भी सौभाग्य इन्हें प्राप्त है। वैसे तो सुकांत जी अर्थशास्त्र में स्नातक हैं लेकिन इनकी रुचि का विषय विचार, दर्शन, अध्यात्म तथा विज्ञान रहा है और ये साहित्य में भी इन्हें ही ढूँढ़ते हैं, इन्हें ही लिखते हैं। इनकी कविताएँ मूलतः इनके अनुभव हैं। लेकिन, ये विचारों तथा दर्शनशास्त्र से गहन रूप से प्रभावित हैं। हालाँकि, इन कविताओं के माध्यम से आत्म- मंथन तथा जागरण के संदेशों की जो अभिव्यक्ति हुई है, वही इनका हृदय है। इन्हें आशा ही नहीं विश्वास है कि हृदय से निकले इन भाव- कविताओं को कोई भी सहृदय पाठक पढ़ने के बाद इसे अपने हृदय में स्थान दिए बिना रह नहीं पाएगा।
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