सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कवि श्री राजेंद्र प्रसाद गुप्ता जी की प्रस्तुत काव्य संकलन, 'जनभाषा कविता के गांव (कविता के रंग - कहानी के संग), की अधिकांश कविताएं, कहानियां गांव की मनोरम प्रकृति की झांकियां दिखातीं हैं। गांवों से गुजरते हुए मानव-सभ्यता के विकास की झलक इनमें विशुद्ध रूपेण दिखाई पड़ती है। और जिसकी प्रभा सुधी पाठकों के मानस-स्थल को दीप्त कर देगी। ऐसा मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक को आद्योपांत पढ़ते हीं सुधी पाठकों का दिल बाग बाग हो जायेगा। मनीषी पाठकों के लिए प्रभावकारी चिंतन का आधार तो इसमें मिलेंगे हीं, उन्हें सहज मनन के सांचे भी उपलब्ध मिलेंगे। इस पुस्तक की रचनाओं में कृत्रिमता, व्यर्थ का भ्रम आदिक सामान्य पाठकों को कतई नहीं मिलेंगे। इसमें उन्हें जगह-जगह हर्ष, प्रेम, आनंद आदिक के साक्षात् दर्शन होंगे और जिसे पढ़ते हीं उनका हृदय गद्गद हो जायेगा।
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पाँच जनवरी, 1952 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के ग्राम - हाटा (बनुआडीह) में जन्म। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही। राष्ट्रीय कैडेट कोर के 'बी' प्रमाणपत्र के साथ कलकत्ता विवि से 18 की उम्र में 1970 में स्नातक एवं गोरखपुर विवि से एम• ए• (अर्थ•) 1973 में । विद्यार्थी-जीवन के अंत के साथ ही वैवाहिक जीवन प्रारंभ। 1974-76 में प्रतिष्ठित मिशनरी स्कूल एवं कालेज में अध्यापन तथा 1976-78 में महालेखाकार, नगालैंड कार्यालय में लेखापरीक्षक। 1978 से जनवरी,2012 तक पुनः केंद्र सरकार में वित्त मंत्रालय के केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग में अधिकारी रहा। काव्यलेखन विद्यार्थी-जीवन से ही स्वांतः सुखाय जारी रहा। प्रथम रचना 'भगवान' 16 की उम्र में। पहले कभी प्रकाशन की नहीं सोची। रचनाएँ विभागीय पत्रिकाओं में छपती रहीं। सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र रूप से कविता एवं कहानी लेखन । प्रकाशित पुस्तकें : जनभाषा की कविता-नगरी (149 कविताएं), जनभाषा कविता के द्वार (188 कविताएँ ), हवा का रुख (कोरोना-पुराण सहित 145 हास्य प्रधान कविताओं का संग्रह), चूहों का सरपंच ( कथा-कहानी,संस्मरण आदि का संकलन) , 'कविताएं डाॅ• अंशु के साथ' का साझा कथा/संस्मरण (प्रथम संकलन) तथा 'काव्य सरिता ' द्वारा संपादित साझा काव्य संकलन(द्वितीय संस्करण) । काव्यलेखन की प्रथम प्रेरणा मुझे बंगाल के अपेक्षाकृत शांत,सुंदर शहर खड़गपुर के प्रकृति से परिपूर्ण रेल- उद्यान से मिली जहाँ मैं प्रायः बैठा करता था। आगे अपनी लक्ष्मीस्वरूपा धर्मपत्नी शकुन्तला,परिवार,आसपास के परिवेश एवं समसामयिक घटनाओं से भी प्रेरित हुआ । अंततः मेरा मानना है कि आमजन की बोलचाल की भाषा में लिखी सहज संप्रेषणीय कविताएं एवं कहानियां जनमानस की समझ में सरलता से आ जाती हैं ।जनभाषा में रचना मेरी आदत-सी बन गई है ।
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