सभी भावों में सबसे सुंदर बोध है प्रेम का। जिस तरह जीवन के दार्शनिक पक्ष में आत्मा का अस्तित्व है ठीक उसी प्रकार जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक आदि पक्षों में प्रेम को देखा जाना चाहिए। इश्क़ सामाजिक मनुष्य का आधारभूत अंग है और इसी से समाज में फैले हुए तमाम प्रकार के रोगों को दूर किया जा सकता है। प्रेम में डूबकर, बहुत ही सरलता से जीवन का मर्म समझा जा सकता है। मानवता की राह में सबसे ख़ूबसूरत पड़ाव प्रेम है जो हरदम हमारे साथ रहता है। मेरा लिखना इन्सानियत से प्रेम करना है।
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पंकज से 'सफ़र' बनने का सफ़र अभी शुरू हुआ है जहाँ मंज़िल भी एक सफ़र ही है। जन्म, अणुव्रत आंदोलन के प्रणेता जैन संत आचार्य श्री तुलसी की पावन जन्मस्थली, लाडनूं (राजस्थान) में 28 मार्च 1999 को हुआ। कविता से जुड़ाव स्कूल के दिनों से ही हो गया था जो आगे चलकर NIT JSR के ख़ूबसूरत आँचल में फला-फूला। वहाँ कविता के प्रति समझ विकसित हुई। किस तरह शब्दों के अनूठे क्रम से भावों का झरना फूट पड़ता है और किस क़दर शायर दिल उसमें डुबकियाँ लगाता हुआ भव सागर की गहराइयों में बैठता चला जाता है? इन तमाम सवालों की अंतर्मुखी यात्रा का उद्देश्य प्रेम तक पहुँचना था जो आज भी सफ़र के रूप में जारी है।
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