ये किताब समर्पित है एक किरदार को, जो किसी पहचान, इंसानी चेहरे या नाम का मोहताज नहीं होता है। एक किरदार जो अपने आप में संपूर्ण होता है। जो तब भी साथ होता है जब आपके अपने भी साथ नहीं दे पाते हैं। वो इतना पास होता है जितने आप कभी किसी और के नहीं हो पाते हैं। जब दुनिया आपको बेगानी सी लगने लगती है, इस किरदार की उत्पत्ति आपके जेहन में वहीं से होती है।
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