नरेंद्र शर्मा का परिचय उनकी ग़ज़ल / काव्य अनुभूति के बिना अधूरा है। उनकी रचनाओं को समग्र रूप से लिया जाए तो अह्सास. होगा कि उनका नज़रिया सबसे अलग है। लेखक कवि शायरी की सीमा से परे जब एक शायर समाज से जुड़ता है तो वह अधिक संवेदनशील हो जाता है। उसके भीतर लेखन की प्रबल शक्ति ने उन्हें पत्रकारिता का क्षेत्र सौंप दिया। यह नरेंद्र शर्मा का सौभाग्य था कि वह इस क्षेत्र में भी ईमानदारी से जुड़े और उस वक्त पत्रकारिता को खूब सम्मानित क्षेत्र समझा जाता था। बेशक पत्रकारिता आज भी सम्मान का आधार. है पर उस वक्त दबाब न थे सच्ची सच्ची भावन थी संवेदना थी सच कहना गर्व था और नरेंद्र उन्ही पड़ावों को पार करते चले गए। सन 1978 से लेकर 1985 तक का दौर पंजाब के लिए सुखद दौर न था। अमृतसर में रह वहां हौंसले से पत्रकारिता करने में नरेंद्र शर्मा ने गोलियों की लड़ाई भी लड़ी और उस घटना के बाद भी उनकी कलम थकी नहीं। यह. पुस्तक उनके हौसले की. दास्तां है। जितना आप पढ़ते जाएंगे उतना आप लेखक के हौसले को करीब से देख पाएंगे।
यह उनकी दूसरी पुस्तक है l चार अक्टूबर 1953 को उनका जन्म हिमाचल में ज़िला उना के गाँब अम्बोआ में हुआ था l उनकी आरम्भिक शिक्षा भी वही बाबा-दादी (के पास हुई l उसके बाद में वह माता पिता के साथ रहने के लिए अमृतसर आ गए l गाँव के परिवेश से आने के कारण कई बर्षों तक वह खुद को सहज नही कर पाए l
गाँव और शहरी परिवेश के वीच के दुन्द से उनकी इस शायरी का जन्म हुआ जो आज आपके हाथों में है l
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