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बस कुछ चिट्ठियाँ हैं, किसी बहुत अपने को लिखी हुईं । ऐसा कोई बहुत अपना, जो है भी और नहीं भी है । जिसके होने और न होने में 'महज़ इतना ही फ़र्क है',  जितना कि कल्पनाओं और वास्तविकता में ! पहली चिट्ठी में उसके-मेरे रिश्ते का परिचय है । और बाकी की सारी चिट्ठियों में: कुछ किस्से हैं, कुछ कविताएँ हैं कुछ भाव हैं, कुछ विचार हैं कुछ उलझनें हैं, कुछ सवाल हैं । मानो उस से डायलॉग की चाह में बस केवल एक मोनोलॉग है ! कहीं कोई प्रकृतिजन्य होने वाले आघात के शायद पूर्वाभास हैं । कोई एक अबूझ सी खोज है अबूझ सी कोई एक सीखने की चाह है । लिखने वालों की बिरादरी में से कुछ दिग्गज पूर्वजों के, श्रेष्ठिजनों के, वरिष्ठजनों के उद्धरण हैं । कुछ स्नेहीजनों की सोशल मीडिया वॉल पर से लिए हुए उक्तियों के उद्धरण हैं । कुछ दृश्य, कुछ अदृश्य सी प्रेरणाएँ हैं । और इस तरह मन की बेचैनी से, शब्दों में निकल पड़ी ये कलाकृतियाँ हैं । उम्मीद है आप इस सब में से कहीं न कहीं, कोई न कोई तादातम्य ज़रूर स्थापित कर पाएंगे और इन चिट्ठियों को पढ़ना रुचिकर पाएंगे!

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नीलम लंबे समय से टेक्नोलॉजी सर्विसेज के क्षेत्र में कार्यरत हैं लेकिन भाषाओं से उन्हें हमेशा लगाव रहा | कुछ न कुछ साहित्य पढ़ते रहने में हमेशा दिलचस्पी रही | खाली समय अक्सर कोई न कोई क़िताब पढ़ते हुए बीता | हालांकि लेखन कभी नियमित नहीं रहा | इस क़िताब के बारे में वे कहती हैं – “कुछ व्यवस्थित कभी लिखूंगी, सोचा नहीं था | लेकिन जैसे कहीं सालों के पड़े हुए सूखे में अचानक पानी का सोता फूट पड़े और सामान्य बुद्धि से ये समझ पाना मुश्किल हो कि ये क्या हुआ और कैसे हुआ, वैसे ही मानो लेखन भी कभी-कभी अचानक खुद-बखुद घटित हो जाता है, और आप सोचते रह जाते हैं कि ये क्या और कैसे हुआ | इन चिट्ठियों का भी कुछ ऐसा ही है ! ये न कहानी हैं, न कोरी कविताएँ और न ही उपन्यास | बस केवल कुछ चिट्ठियाँ बन पड़ी हैं, मन के किसी किरदार के लिए | उम्मीद है इन्हे पढ़ते हुए आप कहीं न कहीं, कोई न कोई तादात्म्य अवश्य स्थापित कर पाएंगे और इन्हे पढ़ना रुचिकर पाएंगे |”

Ek Anuja

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