आज लग रहा था जैसे सुबह कुछ थम कर हुई हो। जैसे सूरज भी कुछ थका थका सा हो। हमारी ज़िंदगी के तम को दूर करते करते, उसमे आशा की एक नयी रोशनी भरते भरते जैसे थक सा गया हो। पर इतने सालो से जलता सूरज अभी थका नहीं था बल्कि मैं थका हुआ था और इसीलिए शायद मुझे सबमें अपना प्रतिबिम्ब झलक रहा था।
Doodhi
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