श्रीरामचरितमानस और महाभारत इस देश और समाज की अमूल्य धरोहरें हैं। इनका गान, पान और सम्मान अनंतकाल से होता रहा है, परंतु समय एक ऐसा परिबल है जिसे न तो नकारा जा सकता है, न ही टाला जा सकता है। अतः कालखण्ड की हर करवट पर हमें नई परिभाषाएँ और नई विचारधाराएँ देखने को मिलती हैं। किसी बीते हुए कालखण्ड में हुए अनुभवों को वर्तमान में भी सर्वव्यापक और सर्वोपरि मानना असहज और अप्रामाणिक है। आज का युवा, आज के ही युग की भाँति, तेजी, सटीकता और हेतुनिष्ठता का खोजी है। वह विस्तार से पहले सार चाहता है और उस सार से विस्तार का चयन करना चाहता है। उसका ध्येय अनुभव, आत्मव्याख्या और स्वनिष्कर्ष ही प्रतीत होता है। आधुनिक मानव की यह खोज अविरत और निरंतर जारी है। यह संग्रह संवाद-रूपी कविताओं के माध्यम से उस तृष्णा को मिटाना भी चाहता है और बढ़ाना भी। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ मुख्य चरित्रों के अलावा उन पात्रों की भी बात करती हैं जो मुख्य कथानक में कहीं पीछे छूट गए हैं।
साथ ही यह कविता-संग्रह वर्तमान युग के उन तर्कसंगत प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करता है जिन्हें या तो टाल दिया गया या पीछे छोड़ दिया गया। महाभारत और रामायण रूपी दो भागों में विभाजित यह संवाद-संहिता अपने २२ अध्यायों में २२ चरित्रों का निरूपण करने का प्रयास करती है।इन संवादों में प्रस्तुत प्रत्येक महामना के भावालोकन हेतु उनके संवाद, शब्दावली, प्रश्नों और मनोभावों को समझना आवश्यक होगा।
आशा है — “तृष्णा मिटेगी भी और बढ़ेगी भी।”
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