प्रोफेसर (डॉ) संजय मोहन जौहरी चार दशक से अधिक मीडिया रिपोर्टिंग - न्यूज़ एजेंसी पी टी आई में वरिष्ठ पत्रकार के रूप में और वर्तमान में एमिटी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में निदेशक के रूप में मीडिया प्रशिक्षण से जुड़े हुए हैं। मूलरूप से अंग्रेजी में पत्रकारिता करने वाले डॉ जौहरी की "कोरोना भैया मेरे सपने में" व्यंग्य के रूप में पहली किताब है । कोरोना महामारी के दौरान जब परिवार और समाज एक अजीब दौर से गुजर रहे थे उस तनाव के समय में मन को हल्का कर इसे कैसे एक व्यंग्य में परिवर्तित किया जाये, लेखक ने एक ऐसी ही कोशिश की है । सामान्य बोलचाल और हलकी फुल्की भाषा में लिखा गया “कोरोना भैया मेरे सपने में” पूर्ण रूप से एक ‘व्यंग्य’ है। परिकल्पना में कोरोना ‘प्रोटॅगनिस्ट’ (नायक) हैं और लेखक की उनसे ‘सपने’ में बातचीत एक ‘कल्पना-मात्र’ है। यह सभी लेख किसी के प्रति बगैर दुर्भावना के लिख इसे केवल रोचक बनाया गया है। चूँकि कोरोना वायरस से फैली महामारी ने दुनिया का शायद ही कोई देश छोड़ा हो, कोरोना रुपी नायक ने अंतराष्ट्रीय भ्रमण के दौरान संभवतः हर देश की सामाजिक और राजनैतिक हालातों का गहन अध्ययन भी किया है। भले ही ‘वुहान’ इनकी जन्म स्थली रही हो, इनका मानना है इंडिया से रिश्ता गहरा है क्योंकि टाइफाइड, चेचक, मीसल्स और एच् आई वी जैसे वायरस का पहले से ही कब्ज़ा है। यह सभी को अपना रिश्तेदार बताते हैं। पुरबिया भाषा से तो इनका बेहद प्रेम है और लेखक से संवाद के दौरान अक्सर पुरबिया बोलते हुए पाए गए। 'लॉक डाउन' और 'महामारी' की शुरुआत से लेखक के सपने में आकर कोरोना भैया से बातचीत का यह दौर 'ओमीक्रोन' के तीसरी लहर तक बना रहा। आशा है “कोरोना भैया मेरे सपने में” के रूप में यह प्रस्तुति पाठकों को रोचक लगेगी।
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