संस्कृत वाङ्मय अति विशाल एवं प्राचीन है इस बात को सभी भारतीय व विदेशी विद्वान् निर्विवाद रूप से स्वीकार करते हैं। सम्पूर्ण विश्व का अखिल ज्ञान संस्कृत वाङ्मय में समाहित है। इस विशाल वाङ्मय में वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद, स्मृति ग्रन्थ, सूत्र ग्रन्थ, पुराण साहित्य इत्यादि सम्मिलित हैं। पूर्व काल में हमारे ऋषि - मुनि वन में निवास करते थे। वहाँ प्रकृति के आँचल में रहते हुए उन्होने ज्ञान की खोज में गहन चिन्तन मनन किया। इस क्रम में ऋषियों ने वैदिक साहित्य एवं पुराणादि ग्रन्थों के रूप में इस ज्ञान को अभिव्यक्त किया।
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डॉ० मिथिलेश कुमार का जन्म स्थान देवप्रयाग टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड है। शिक्षा- आचार्य (संस्कृत साहित्य), एम.ए. संस्कृत, बी.एड. , यू.जी. सी. नेट, पीएच. डी.। सम्प्रति- सहायक अध्यापक संस्कृत, जनता इंटर कॉलेज क्यारी मठियाली , टिहरी गढ़वाल। लेखक की प्रारंभिक शिक्षा देवप्रयाग से हुई है। प्रारम्भ से ही संस्कृत भाषा के प्रति अभिरुचि रहने के कारण आचार्य संस्कृत और फिर हेमवती नन्दन गढ़वाल विश्वविद्यालय से संस्कृत भाषा मे पीएच. डी की उपाधि प्राप्त की। । विभिन्न शोधपत्रिकाओं में शोधपत्र प्रकाशित कर चुके हैं। वर्तमान में संस्कृत भाषा के उन्नयन हेतु संस्कृत सेवा में समर्पित हैं।
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डॉ. (श्रीमती) कुसुम डोबरियाल का जन्म स्थान पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) है। डॉक्टर कुसुम डोबरियाल ने सन १९८४ में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा सन १९८९ में राष्ट्रीय संस्कृत शिक्षा संस्थान द्वारा पोषित छात्रवृत्ति पाकर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से डी० फिल० की उपाधि प्राप्त की । डॉक्टर कुसुम डोबरियाल सन १९९२ से निरंतर इसी विश्वविद्द्यालय में अध्यापन कार्य कर रही हैं तथा सन २०१९ में उपाचार्य के पद पर प्रोन्नत हुई हैं। आप संस्कृत साहित्य, विशेषतः पुराणों के अध्ययन पर शोध कार्य कर रही हैं । आपने ३ शोध छात्रों को पी-एच ० डी ० की उपाधि हेतु निर्देशित किया है। वर्तमान में गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौड़ी परिसर में विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य रत हैं ।
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