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"बीसवीं गाँठ " की पृष्ठभूमि महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के एक सौ वर्ष  बाद की है । प्राचीन बिहार के वैशाली नगर में दूसरी बौद्ध संगीति आयोजित होती है । इसमें उपन्यास का नायक शिव भी (चंपा महाजनपद से )  भाग लेने जाता है । जाने से पूर्व वह अपनी पत्नी सुधा को एक धोती में बीस गाँठें बांधकर देता है , और कहता है कि प्रतिदिन एक गाँठ खोलती जाना। बीसवीं गाँठ खुलेगी और मैं आ जाऊँगा । शिव के पास भी बीस गाँठों वाली एक रस्सी है जिससे एक गाँठ वह भी खोलता रहता है ।
वैशाली में संगीति आयोजित होती है । वहाँ बहुत सारे विवाद उभरते हैं । शिव और उसके मित्र वैशाली भ्रमण करते हैं । वे पुष्करिणी और आम्रपाली का विशाल भवन भी देखते हैं । पर इन सबके बीच शिव एक सघन मानसिक उलझन में पड़ जाता है । क्या वह बीसवीं गाँठ खुलने तक लौट पाता है? यह उपन्यास भिक्षुओं के यात्रा वृत्तांत,  तत्कालीन सामाजिक -धार्मिक जीवन शैली, दूसरी बौद्ध संगीति, प्राचीन वैशाली एवं अन्य नगरों के विवरण सहित रोचक प्रसंगों से परिपूर्ण है।

 

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डाॅ राजेश वर्मा अरुणाचल प्रदेश में इतिहास के प्राध्यापक हैं । इनका जन्म स्थान भागलपुर, बिहार है।  इनकी प्रकाशित कृतियों में प्रमुख हैं-
शिमला की डायरी (लघु उपन्यासों, कहानियों एवं कविताओं का एक संकलन), स्वर्ण-काली (उपन्यास), उत्तर पूर्व भारत का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ नार्थ ईस्ट इंडिया। इनकी कहानियाँ, कविताएँ एवं सम सामयिक लेख भी पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं ।

Beesvin Gaanth

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