“गाँव की सबसे प्यारी बेटी, सबकी लाड़ली बड़की अपनी मेहनत, लगन के बलबूते पर पूरे जिले में प्रथम आयी थी और वह शहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती थी। परंतु बड़की शायद इस सच से अनजान थी कि उसके एक-एक सपने को निर्दयी पंचायत के निर्णयों तले रौंद दिया जाएगा और उसके अपने, न चाहकर भी बड़की का विवाह एक ऐसे अशिक्षित किसान से तय करने के लिए विवश हो जाएँगे जिसके पास स्वयं का खेत था, कई दुधारू पशु थे। क्या बड़की इस रूढ़िवादी विचारधारा से लड़ पाई? किसी ने भी बड़की का साथ दिया अथवा कुछ दिनों बाद उसके सपनों की अर्थी उसकी डोली के साथ उठ गयी?”
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युवा हिन्दी लेखक करन निम्बार्क की जन्मभूमि व कर्मभूमि मुंबई है। वर्ष २००४ में मुंबई विश्वविद्यालय से वाणिज्य में प्रथम श्रेणी से स्नातक उत्तीर्ण कर चुके हैं। साथ ही मोंटाज टीवी और फिल्म अकादमी से पटकथा लेखन और निर्देशन में डिप्लोमा भी कर चुके हैं। हिन्दी के साथ अंग्रेजी, मराठी, गुजराती और मारवाड़ी भाषा का ज्ञान भी बखूबी रखते हैं। करन निम्बार्क ने जीवन में प्रयोग बहुत किए हैं और यह उपन्यास भी शायद उसी प्रयोग प्रकृति के फलस्वरूप लिखा गया है। लेखन में बचपन से ही रूचि रही है। अब तक कुछ समाचार पत्रों, ऑनलाइन समाचार साइट अजेय भारत के लिए कई कविताएँ, लेख, समीक्षा लिख चुके हैं। फिल्म लेखन व निर्देशन के साथ मंच से भी जुड़े रहे हैं। सामाजिक कार्यों में भी समयानुसार यथाशक्ति भाग लेना पसंद है। पहला हिन्दी उपन्यास “नायिका” सह-लेखक के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित श्री अतनु बिस्वास के साथ लिखा था। वर्तमान में डिजिटल मीडिया में हिन्दी अनुवादक के रूप में कार्यरत हैं। इससे पूर्व विज्ञापन और लघु फिल्म निर्माण आदि से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं।
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