अनूभूतियाँ किसी निश्चित समय सीमा में तैयार सांचे मेें ढाली गई कृतियाँ नहीं है अपितु पल-पल सहज, सरल उपजे अनुभव ही शुद्ध स्वर्ण की तरह ’’अनूभूतियाँ’’ ही हैं अतः निवेदन है कि व्याकरण की विसंगतियों को कीचड़ में पड़े कमल की तरह अलग करते हुए इस अनुपम अलौकिक सागर में पूर्ण तन्मयता के साथ शुद्ध सरल पावन निश्छल मन से गहरी डुबकी लगा निश्चय ही गुरूप्रेम, देशप्रेम, मातृ प्रेम जैसी मीठी अनूभूतियों में आप भी सार-सार होकर ईश्वर प्रतिरूप हो सकेंगें ऐसा मेरा विश्वास है।
Anubhootiyan
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