“अक्स” कुछ खूबसूरत लम्हों और तजुर्बों से सजे ख़्यालों की किताब है।
बीते साल ने लाक डाउन की वजह से कुछ मनन करने का समय और अवसर दिया।यह एहसास हुआ कि हमारे कल की परछाइयाँ कभी हंसीन थीं, तो कभी दर्द भरी। कैसा भी वक़्त हो, बीत ही जाता है । रह जाती हैं तो खट्टी मीठी यादें । यही यादें हमारे आज के सफ़र को आसां कर जाती हैं। हम बचपन से यौवन और उसके बाद के वक़्त को किस तरह जी कर पीछे छोड़ आते हैं। पता ही नहीं चलता। फ़ुरसत के पल जब तक मिलते हैं, तब तक आँखें धुंधला जाती हैं। सब कुछ भूले- बिसरे ख्यालों की जानिब लगते हैं। जिंदगी के सभी रंगों से कभी रंगोली तो कभी होली मनाते पार करते जाते हैं। बसंत में बिखरे रंगों से सराबोर हो जाते हैं , तो कभी पतझड़ की तरह झड़ जाते हैं। इन सबका असर हमारी ज़िंदगी , हमारे सुखों और गमों पर पड़ता ही है। हर पल , हर सांस आगे ले जाता है और जिंदगी पीछे छूटती जाती है ।
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लेखिका निकुंज अग्निहोत्री का नाम शायरी और कविताएँ पढ़ने वाले पाठकों के लिए नया नहीं है। इससे पहले इनकी पुस्तक
“मेरे दो चेहरे हैं” प्रकाशित हो चुकी है। जिसे पाठकों ने भरपूर स्नेह दिया।
अब निकुंज एक बार फिर से “अक्स” नामक किताब के माध्यम से अपनी सरल- सहज अनुभूतियों को अभिव्यक्त
करते हुए आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।
निकुंज दिल्ली में जन्मी, कान्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर स्नातक की डिग्री सेंट स्टीफेंस
कॉलेज से ली। इस के बाद इन्होंने एमबीए (फाइनेंस) भी किया।
एक उच्च श्रेणी के निजी बैंक में उच्च पद पर कार्यरत रहीं। वर्तमान में लेखन के माध्यम से रुचियों का विस्तार कर
रही हैं।
अंग्रेजी भाषा में भी इनकी गहरी पकड़ है। यह अंग्रेज़ी में “ पोएट्री ब्लॉग” भी लिखतीं हैं। जब कभी इनका ह्रदय
प्रफुल्लित होता है या आज के हालातों से द्रवित हो उठता , तो भावनाएँ शब्द बनकर विचारों का स्थान ले लेती हैं और इनके
मन - मस्तिष्क के पटल पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं, जो कविता और शायरी बनकर पन्नों पर सिमट जाती हैं। आशा है, इन के
अनुभव व भाव आपके हृदय तक पहुँच पाने में सफल होंगे ।आप के बहुमूल्य सुझावों का स्वागत है।
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