ज़िंदगी, समय, दुनिया और चरित्रों को देखने की व्यापक दृष्टि और संवेदनशीलता ने संतोष कुलश्रेष्ठ के व्यक्तिगत अनुभवों और संस्मरणों को उत्कृष्ट कथा साहित्य बना दिया है. अपने निकटतम व्यक्तियों, यहाँ तक कि अपने पिता को भी महिमा मंडित करने के बजाय संतोष जी ने उन्हें वस्तुनिष्ठ तरीके से एक इंसान के रूप में देखा है. पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में मध्य वर्ग के संघर्षों, स्वप्नों, द्वंद्वों, आकांक्षाओं और विडंबनाओं को बहुत ही रोचक ढंग से उकेरा गया है. वर्णन में एक ऐसी चित्रात्मकता है कि घटनाएं और पात्र पाठक के सामने सजीव उपस्थित हो जाते हैं. ‘ऊपर चले रेल का पहिया’ की पठनीयता इतनी जबरदस्त है कि एक बार शुरू करने के बाद आप पूरी पुस्तक खत्म कर के ही दम लेंगे. शुभकामनाएँ.
श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ – संगीत नाटक अकादमी अवॉर्डी पूर्व निदेशक – भारतेंदु नाट्य एकेडमी - लखनऊ
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संतोष कुमार कुलश्रेष्ठ
जन्म- 06 जनवरी 1960
शिक्षा – बी.एस सी. (कानपुर विश्व विद्यालय)सम्प्रति- भारतीय रेल के उपक्रम बनारस रेल इंजन कारखाना से वरिष्ठ अभियंता /अभिकल्प के
पद से जनवरी 2020 में अवकाश प्राप्त
वर्तमान में भारत सरकार के उपक्रम RITES में विशेषज्ञ के तौर पर अनुबंधित
लेखन – सेवा काल में तमाम तकनीकी लेख और कवितायेँ
रुचियाँ- रेलवे के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लेखक, उद्घोषक और कलाकार के तौर पर
उपस्थिति, लगभग 30 के करीब हिन्दी नाटकों में काम किया. जिनका मंचन वाराणसी
के अलावा मुगलसराय, दिल्ली और हैदराबाद में भी हुआ. एक वीडियो सी डी में भी
युवा दशरथ के पात्र को निभाने का अवसर मिला.
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