टर्निंग पॉइंट शायद सभी के जीवन में आने वाले वह घटनाक्रम हैं जिसे आप केवल याद ही नहीं रखते हैं बल्कि पीछे मुड़कर देखने पर आपको अहसास कराते हैं कि कैसे जीवन निकल गया। (टर्निंग पॉइंट्स महज़ भविष्य के उतार -चढ़ाव नहीं हैं बल्कि वे एक आइना हैं जिसमे इंसान अपने अतीत से भी रूबरू होता है कि कैसे उसने ज़िन्दगी के उस मुश्किल मोड़ पर ख़ुद को संभाला था)। कभी यह टर्निंग पॉइंट आपको किसी ऐसी कमजोरी की ओर ले जाते हैं कि कैसे आपने ऐसे समय से अपने आपको निकाला या फिर किसी अवसर ने आपके जीवन को मजबूती दी। दिमाग पर जोर देंगे तो शायद आपको ऐसी एक नहीं कई परिस्थितियां याद आ जायेंगी जहां आपको जीवन के सफर में कई ख़ास मौके टर्निंग पॉइंट के रूप में नजर आएंगे। (टर्निंग पॉइंट्स पर किसी का एकाधिकार नहीं होता। यह इंसानी ज़िन्दगी के साथ अखंड रूप से गुंथे हुए होते हैं जैसे कि कोई लता और उसके ऊपर उठने का सहारा)। टर्निंग पॉइन्ट जीवन का एक मोड़-एक अहसास है जो हम सभी के जीवन का हिस्सा होता है। बताइये ऐसा होता है कि नहीं। आज का मध्यम वर्ग दरअसल परिवार, दफ्तर, समाज और बच्चों के सपने जैसे विषय को लेकर एक अंतर्द्वंद के साथ जीता है। "टर्निंग पॉइंट" शीर्षक के रूप में इस पुस्तक में कुछ ऐसे ही प्रसंग हैं जो मेरे और आप जैसे मध्यम वर्गीय परिवारों की जीविका के बीच चलते द्वन्द को दर्शातें हैं। संकलन की एक ऐसी ही कोशिश का नाम है टर्निंग पॉइंट।
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प्रोफेसर (डॉ) संजय मोहन जौहरी 20 वर्ष से अधिक न्यूज़ एजेंसी पी टी आई में वरिष्ठ पत्रकार रहे और फिर लगभग इतने ही वर्षों से पत्रकारिता के प्रशिक्षण से जुड़े रहकर वर्तमान में एमिटी के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। मूलरूप से अंग्रेजी में पत्रकारिता करने वाले डॉ जौहरी हमेशा से अपने इर्द गिर्द हो रही घटनाओं पर गहन नज़र रखते थे। विशेष रूप से निम्न एवं मध्यम वर्गीय परिवारों की जिंदगी से उनका जुड़ाव बेहद नजदीकी रहा है। इन्हीं घटनाओं और परिवारों की जिंदगी के ताने बाने लिए हुई टर्निंग पॉइंट लघु कहानियों के संग्रह के रूप में उनका पहला प्रयास है। पात्रों के नाम बदले हुए हैं लेकिन सभी परिवार हमारे और आपके बीच में हैं। लेखक के विषय में एक बात और बेहद खास ये है कि न्यूज एजेंसी में काम करते हुए उनकी लाइफ स्टाइल भी डेडलाइन और क्रिएटिविटी के इर्दगिर्द जकड़ चुकी है। शायद यही वजह है कि समाज को देखने का उनका नजरिया बहुत रोचक है और उसी को उन्होंने अपनी कलम से शब्दों में पिरोया है। बतौर मास कम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और पत्रकारिता की शिक्षा जगत में भी उन्होंने अपने छात्रों को यही दिशा दी है कि समय को अहमियत दो, समय तुमको अहमियत देगा। उनके निर्देशन में पासआउट हो चुके तमाम छात्र आज मीडिया जगत में बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं लेकिन आज भी जौहरी सर का अनुशासन सभी के लिए बिल्कुल वैसा ही है। तो इस किताब को पढ़ने वाले हर पाठक इस बात से तो निश्चिंत रहें कि इसमें लिखी घटनाएं कोई फिक्शन या बनावटी नहीं हैं बल्कि किसी न किसी के द्वारा वो पल जीया गया है और शायद तभी आप इस किताब को पढ़ते हुए खुद को हर किरदार की जगह रख पाएंगे। ऐसा लेखक का भी विश्वास है।
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