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यह उपन्यास शाम्भवी, एक शिव भक्त की जीवन गाथा है। इसकी नायिका समाज का एक अति साधारण चरित्र होते हुए भी बरबस सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। वह शिव की अनन्य भक्त हैं।  शिव के प्रति उनका प्रेम, समर्पण और विश्वास अटूट एवं अद्भुत है। यह उपन्यास उनकी इसी अमर शिव-प्रेम गाथा को रेखांकित करता है। शिव के प्रति उनके अथाह प्रेम और समर्पण के कारण ही लेखिका ने उन्हें "शिव की मीरा" के नाम से संबोधित किया है। इसके अतिरिक्त यह कहानी उसके निजी जीवन के चुनौतियों एवं संघर्ष पर भी प्रकाश डालता है। यह उपन्यास हमारे आज के  पितृसत्ता केंद्रित समाज के ऊपर एक मूक प्रश्न है। वह समाज जो नारी शक्ति, नारी उत्थान, नारी मुक्ति और उसके अधिकारों की बात तो करता है पर वह भीतर से अपने प्रयासों में पूरी तरह खोखला है। वह समाज जो अपने अस्तित्व और पहचान के लिए स्त्री को आधे इंच का स्थान भी देने से मुकर जाता है। 

यह उपन्यास समाज के उन सभी खोखले और झूठे तथ्यों को चुनौती देता है जो एक स्त्री के अस्तित्व को मात्र किसी की पत्नी, मां, बहू, बेटी या बहन होने तक सीमित करता है। हर स्त्री अपने आप में एक शख्सियत है जिसकी अपनी पसंद, नापसंद, विचार, एवं तर्क हो सकते हैं जो सामाजिक एवं पारिवारिक पूर्वाग्रहों से पूर्णतः मुक्त है। जब वो दूसरों के सपने, विचार एवं इच्छा को सीमित नहीं करती, ना ही उन पर कोई बंदिश लगाती है, तब वह किसी और को स्वयं को नियंत्रित और सीमित करने की इजाजत कैसे दे सकती है??? कुछ चंद चुनिंदा रूढ़िवादी विचारों के नाम पर यह समाज उसकी क्षमताओं और आकांक्षाओं को कतई बांध नहीं सकता। 

शाम्भवी ने इस रूढ़िवादी समाज के खिलाफ विद्रोह किया और कहीं अधिक सक्षम एवं समर्थ होकर उभरी। वह दूसरों के लिए विश्वास, प्रेरणा एवं शक्ति की मिसाल बनीं। उसने समाज के वंचित एवं कमजोर समुदाय के लिए एक निष्पक्ष मंच का निर्माण किया। उसने अपनी दूरदर्शिता एवं लोकोपकारी समझ से एक पूरे गांव को सशक्त एवं समर्थ बनाया। उसने अपने प्रयासों से पूरे गांव के लिए शिक्षा, रोजगार एवं पोषण सुनिश्चित किया। शाम्भवी ने अपने जीवन में सामाजिक कुरीतियों और रूढ़िवादी परंपरा की वजह से बहुत कष्ट और दर्द सहन किया था। इसके फलस्वरूप उसने अपनी अंतश्चेतना की पुकार सुनी और गरीब, दुखी और लाचार लोगों, विशेष रूप से स्त्रियों की शक्ति और संबल बनी। उसका दृढ़ मत था कि शिक्षा और रोजगार ही दो ऐसे मजबूत स्तंभ हैं, जिसकी मदद से हम सम्मान से जी सकते हैं और अपने अस्तित्व के संरक्षण और पोषण के लिए खड़े हो सकते हैं। अतः उसने जीवन पर्यंत यथासंभव सभी के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए, जिससे कि वे एक स्वतंत्र एवं सम्मानित जीवन जी पाए। उसके लिए स्वतंत्रता केवल अधिकार का पर्याय मात्र नहीं था बल्कि वह अपने साथ एक निश्चित मात्रा में जिम्मेदारी लाता था। सर्वप्रथम हमें स्वयं को शिक्षा एवं रोजगार से समर्थ एवं सशक्त बनाना चाहिए। उसके बाद हर संभावित रूप से समाज की सेवा और सहायता करनी चाहिए। 
अपनी इस यात्रा के उतार चढ़ाव के दौरान उसने ब्रह्माण्ड के उन दुर्लभ आयामों में प्रवेश किया जिससे उसने कई आध्यात्मिक गूढ़ रहस्य और अनुभव प्राप्त किए। शाम्भवी पूरे समाज के लिए एक सशक्त प्रेरणा बनकर उभरी और अपने जीवन के द्वारा उसने बेहद स्पष्ट संदेश दिया कि अगर स्त्री के अधिकार और स्वतंत्रता का हनन किया जाए, कोई जरूरी नहीं कि वह एक दुखद कहानी का ही रूप ले।
जीवन में यू टर्न भी आते हैं, अगर हम अपनी क्षमताओं और प्रेरणा को सही आकें और उन पर विश्वास करें। 
जिस क्षण से आप दूसरों के लिए जीना और उनके दर्द की दवा बनना शुरू करते हैं, उसी क्षण से परम ब्रह्माण्डीय सत्ता आपको स्वयं से जोड़ कर ऊर्जा और शुभ संकेत प्रदान करने लगती है।

 

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बिहार के एक छोटे से शहर, धनबाद में 1982 में स्वाति कौशल का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। जन्म के कुछ वर्ष बाद ही वह माता पिता के साथ गया आ गई थीं और प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा केन्द्रीय विद्यालय, गया से पूर्ण हुई थी।

बचपन से ही साहित्य में गहरी रुचि थी। परंतु परिस्थिति वश साहित्य अध्ययन नहीं हो सका। परंतु किसी विषय के प्रति आस और प्यास अगर गहरी हो तो इंसान ज्यादा समय उससे दूर नहीं रह पाता। ऐसा ही कुछ स्वाति के जीवन में भी घटित हुआ। विज्ञान, तकनीकी और कंप्यूटर की शैक्षणिक डिग्री होने के बावजूद भी साहित्य के अध्ययन और लेखन से वह खुद को दूर नहीं रख सकी।

अपने 10 साल के कारपोरेट एवं गैर सरकारी संगठन के कार्यकाल में स्वाति वित्तीय, ऑफ़िस प्रबंधन, लेखन एवं संचार जैसे विभागों में अपना योगदान दे चुकी हैं। 

स्वाति एक टैरो कार्ड रीडर, न्यूमेरोलॉजिस्ट एवं एस्ट्रोलौजर हैं। अध्यात्म और सनातन संस्कृति के प्रति गहरा लगाव, एवं नीलकंठ, भगवान शिव के प्रति उनका प्रेम और समर्पण ही इस आध्यात्मिक उपन्यास का आधार है।  

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