जन्म मिर्जापुर में हुआ. ये एक ऐसा शहर था जिसमे शहर होते हुए भी देहात की सरलता भरी हुयी थी. वहां के बसंत इंटर कॉलेज से अपनी छठी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद स्टेट बैंक में क्लर्क के पद पर कार्यरत पिता का स्थानांतरण होने के कारण उत्तर प्रदेश के ही दूसरे शहर बरेली आ गये. यहाँ के राजकीय इंटर कॉलेज से बारहवीं तथा बरेली कॉलेज से दोहरी हिंदी के साथ स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की. तत्पश्चात एक फुटवियर डिजाइन का कोर्स किया और कुछ कम्पनियों में नौकरी भी की लेकिन पारिवारिक कारणों से वापस बरेली आना पड़ा जहाँ कंप्यूटर खेलों की एक दुकान खोल ली.
बात फिर से बचपन की करें तो ये वो समय था जब सरिता, मुक्ता, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी जैसी पुस्तकें हमारे यहाँ नियमित रूप से आया करती थीं. बालमन उस समय साहित्य से ऐसा जुड़ गया कि फिर कहीं भी रहे, ये रिश्ता बना रहा.अख़बारों और पत्रिकाओं के लिए काफी कुछ लिखा और उसे सराहना भी मिली समय बदला और सोशल मीडिया का समय आ गया तो फिर इस पर ही अपने मन में आने वाले शब्दों को उकेरने लगे किन्तु मानना अब भी यही है कि लेखनी बिना पन्नों के अधूरी है इसलिए जहाँ तक हो पन्ने रंगिये क्योंकि यही वो दस्तावेज होते हैं जो आँखों से सीधे ह्रदय में उतरते है
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