आज चौथा दिन था। नन्द बहुत बेसब्र हो उठा था, वह पूर्णा के फोन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। उसे उम्मीद थी पूर्णा फोन जरुर करेगी, किन्तु फोन नही आया था। समय मानो पंख लगा के उड़ चला था, वो चाहता तो पत्र देने के दूसरे दिन ही पूर्णा को वह स्वयं फोन कर सकता था, किन्तु वह इंतज़ार करना चाहता था। बहुधा समय हर प्रश्न का जवाब स्वयं दे देता है, नन्द भी समय का इंतज़ार कर रहा था, वह पूर्णा के मन के उहापोह को समझने का प्रयास कर रहा था, उसे पूर्णा के मन की व्याकुलता का भी अहसास था, किन्तु समय नन्द को व्यग्र बना रहा था। जितना व्यग्र नन्द था, उतनी ही चिंतित पूर्णा भी थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था. वो क्या करे? नन्द को क्या जवाब दे?
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लेखक विमल कुमार गेडाम को पढ़ने के शौक ने लिखने को भी प्रेरित किया, यह इनके द्वारा लिखित दूसरी कहानी है | इनका जन्म छतीशगढ के बिलासपुर में हुआ | इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पत्रौपधि के पश्चात इन्होने बी.काम एवं तत्पश्चात एल. एल. बी. किया | वर्तमान में भिलाई स्टील प्लांट में प्रबंधक के पद पर कार्यरत है | “नि:शब्द” इनकी पहली कृति है जो प्रकाशित हो रही है | कवितीओं को लिखने के शौक ने कहानी के पट तक ले आया | कहानियो के अलावा इनकी रूचि पेंटिंग और स्केच बनाने में ज्यादा रही है | वर्तमान में इनका रहना छत्तीसगढ़ के भिलाई में है |
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